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|| श्री हनुमान चालीसा ||

  • लेखक की तस्वीर: vedant patwa
    vedant patwa
  • 23 अप्रैल 2024
  • 2 मिनट पठन

श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।

बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥


बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुद्धि विध्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥


जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।

जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥


रामदूत अतुलित बलधामा।

अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥|| श्री हनुमान चालीसा ||


महावीर विक्रम बजरंगी।

कुमति निवार सुमति के संगी॥


कंचन वरण विराज सुबेसा।

कानन कुंडल कुंचित केसा॥


हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।

काँधे मूंज जनेऊ साजै॥


शंकर सुवन केसरीनंदन।

तेज प्रताप महा जग वंदन॥


विद्यावान गुनी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर॥


प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया॥


सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।

विकट रूप धरि लंक जरावा॥


भीम रूप धरि असुर सँहारे।

रामचंद्र के काज सँवारे॥


लाय संजीवन लखन जियाये।

श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥


रघupati कीन्ही बहुत बड़ाई।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥


सहस बदन तुम्हरो जस गावे।

अस कहि श्रीपति कंठ लगावे॥


सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।

नारद सारद सहित अहीसा॥


जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।

कबि कोविद कहि सके कहाँ ते॥


तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।

राम मिलाय राज पद दीन्हा॥


तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।

लंकेस्वर भए सब जग जाना॥


जुग सहस्त्र योजन पर भानू।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥


प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।

जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥


दुर्गम काज जगत के जेते।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥


राम दुआरे तुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥


सब सुख लहे तुम्हारी शरणा।

तुम रक्षक काहू को डर ना॥


आपन तेज सम्हारो आपै।

तीनों लोक हांक तें काँपै॥


भूत पिसाच निकट नहिं आवै।

महाबीर जब नाम सुनावै॥


नासै रोग हरै सब पीरा।

जपत निरंतर हनुमत बीरा॥


संकट ते हनुमान छुड़ावे।

मन क्रम वचन ध्यान जो लावे॥


सब पर राम तपस्वी राजा।

तिनके काज सकल तुम साजा॥


और मनोरथ जो कोई लावे।

सोइ अमित जीवन फल पावे॥


चारों जुग प्रताप तुम्हारा।

है परसिद्ध जगत उजियारा॥


साधु संत के तुम रखवारे।

असुर निकंदन राम दुलारे॥


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।

अस बर दीन जानकी माता॥


राम रसायन तुम्हरे पासा।

सदा रहो रघुपति के दासा॥


तुम्हरे भजन राम को पावे।

जनम जनम के दुख बिसरावे॥


अंते काल रघुबर पुर जाई।

जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥


और देवता चित्त न धरई।

हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥


संकट कटै मिटै सब पीरा।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥


जय जय जय हनुमान गोसाईं।

कृपा करहु गुरु देव की नाईं॥


जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बंदि महा सुख होई॥


जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।

होय सिद्धि साखी गौरीसा॥


तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय मंह डेरा॥

 
 

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