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रामायण मनका 108

रामायण मनका 108 का घर के सभी सदस्य नित्यकर्म से निर्वत होकर घर में मंगलवार व शनिवार को या प्रतिदिन सस्वर वाचन [ पाठ ] करने से सभी मनोकामनाये पूर्ण हो जाती हैं | परिवार में सुख शांति , आपसी सामंजस्य , अपार प्रभु श्री राम की कृपा बनी रहती हैं |
|| जय श्री राम ||
रघुपति राघव राजा राम | पतित पावन सीताराम ||
जय रघुनन्दन जय घनश्याम | पतित पवन सीताराम |
भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे , दूर करो प्रभु दुःख हमारे , दशरथ के घर जन्में राम |पतितपावन सीताराम ||
विशवामित्र मुनीश्वर आये , दशरथ भूप से वचन सुनाये , संग में भेजे लक्ष्मण राम | पतितपावन सीताराम ||
वन में जाय ताड़का मारी , चरण छुआए अहिल्या तारी , ऋषियों के दुःख हरते राम |पतितपावन सीताराम ||
जनक पूरी रघुनन्दन आये , नगर निवासी दर्शन पाये , सीता के मन भाये राम |पतितपावन सीताराम ||
रघुनन्दन ने धनुष चढाया , सब राजा का मान घटाया , सीता ने वर पायो राम | पतितपावन सीताराम ||परशुराम क्रोधित हो आये , दुष्ट भूप मन में हरषाये , जनक राज ने किया प्रणाम |
पतितपावन सीताराम ||बोले लखन सुनो मुनि ग्यानी , संत नहीं होते अभिमानी , मीठी वाणी बोले राम |
पतितपावन सीताराम |
लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो , जो कछु दंड दास को दीजो , धनुष तोड्य्या हूँ मैं राम | पतितपावन सीताराम ||
लेकर के यह धनुष चढावो , अपनी शक्ति मुझे दिखलाओ , छुवत चाप चढायो राम | पतितपावन सीताराम ||
हुई उर्मिला लखन की नारी , श्रूतिकीर्ति रिपुसूदन प्यारी , हुई माण्डवी भरत के बाम |
पतितपावन सीताराम ||
अवधपुरी रघुनन्दन आये , घर घर नारी मंगल गाये , बारह वर्ष बिताये राम | पतितपावन सीताराम ||
गुरु वशिष्ठ से आज्ञा लीनी , राज तिलक तैयारी कीनी , कल को होंगे राजा राम पतितपावन सीताराम ||
कुटिल मंथरा ने बहकाई , कैकयी ने यह बात सुनाई , दे दो मेरे दो वरदान | पतितपावन सीताराम ||
मेरी विनती तुम सुन लीजो , भरत पुत्र को गद्दी दीजो , हॉट प्रात: वन भेजो राम |
पतितपावन सीताराम ||
धरनी गिरे भूप ततकाला , लागा दिल में शूल विशाला , तब सुमन्त बुलवाये राम |पतितपावन सीताराम ||
राम पिता को शीश नवाये , मुख से वचन कहा न जाये , कैकयी वचन सुनायों राम
पतितपावन सीताराम ||
राजा के तुम प्राण प्यारे , इनके दुःख हरोगे सारे , अब तुम वन में जावों राम |पतितपावन सीताराम ||
वन में चौदह वर्ष बिताओ , रघुकुल रीती नितिअपनाओ , तपसी वेश बनाओं राम |
पतितपावन सीताराम ||
सुनत वचन राघव हरषाये , माताजी के मन्दिर आये , चरण कमल में किया प्रणाम | पतितपावन सीताराम ||
माताजी मैं तो वन जाऊं , चौदह वर्ष बाद फिर आऊँ , चरण कमल देखू सुख धाम |पतितपावन सीताराम ||सुनी शूल जब यह बानी , भू पर गिरि कोशल्या रानी , धीरज बंधा रहे श्री राम
| पतितपावन सीताराम ||
सीताजी जब यह सुन पाई , रंग महल से नीचे आई , कौशल्या को किया प्रणाम | पतितपावन सीताराम |
मेरी चुक क्षमा कर दीजो , वन जाने की आज्ञा दीजो , सीता समझाते राम | पतितपावन सीताराम ||
मेरी सीख सिया सुन लीजो , सास ससुर की सेवा कीजो , मुझको भी होगा विश्राम |पतितपावन सीताराम ||मेरा दोष बता प्रभु दीजो , संग मुझे सेवा में लीजो , अर्धागिनी तुम्हारी राम |
पतितपावन सीताराम ||
समाचार सुनि लक्ष्मण आये , धनुष बाण संग परम सुहाये , बोले संग चलूँगा राम | पतित पावन सीताराम |
राम लखन मिथिलेश कुमारी वन जाने की करी तैयारी , रथ में बैठ गये सुख धाम | पतितपावन सीताराम ||
अवधपुरी के सब नर नारी , समाचार सुन व्याकुल भारी , मचा अवध में अति कोहराम | पतितपावन सीताराम ||
श्रिंगवेरपुर रघुवर आये , रथ को अवधपूरी लौटाये , गंगा तट पर आये राम | पतितपावन सीताराम ||
केवट कहे चरण धुलवाओ , पीछे नौका में चढ़ जाओ , पत्थर कर दी नारी राम | पतितपावन सीताराम ||
लाया एक कटौता पानी , चरण कमल धोये सुख मानी , नाव चढायो लक्ष्मण राम | पतितपावन सीताराम ||
उतराई में मुदरी दीनी , केवट ने यह विनती कीनी , उतराई नहीं लुंगा राम | पतितपावन सीताराम ||
तुम आये , हम घाट उतारे , हम आयेंगे घाट तुम्हारे , तब तुम पार लगाओ राम
पतितपावन सीताराम ||
भरद्वाज आश्रम पर आए , राम लखन ने शीश नवाए , एक रात कीन्हा विश्राम | पतितपावन सीताराम ||
भाई भरत अयोध्या आये , कैकई को कटु वचन सुनाये , क्यों तुमने वन भेजे राम | पतितपावन सीताराम |
चित्रकूट रघुनन्दन आये , वन को देख सिया सुख पाये , मिले भरत से भाई राम | पतितपावन सीताराम ||
अवधपुरी को चलिए भाई , यह सब कैकई की कुटिलाई , तनिक दोष नहीं मेरा राम | पतितपावन सीताराम ||
चरण पादुका तुम ले जावो , पूजा क्र दर्शन फल पावो , भरत को कण्ठ लगायो राम | पतितपावन सीताराम ||
आगे चले राम रघुराया , निशाचरों का वंश मिटाया , ऋषियों के हुए पूरन काम | पतितपावन सीताराम ||
‘ अनसूया ‘ की कुटिया आये , दिव्य वस्त्र सिय माँ ने पाये , था मुनि अत्री का वह धाम |
पतितपावन सीताराम ||
मुनि – स्थान आए रघुराई , शूर्पनखा की नाक कटाई , खरदूषन को मारे राम | पतितपावन सीताराम ||
पंचवटी रघुनन्दन आए , कनक मृग ‘ मारीच ‘ संग धाये , लक्ष्मण तुम्हे बुलाते राम | पतितपावन सीताराम ||
रावण साधू वेश में आया , भूख ने मुझको बहुत सताया , भिक्षा दो यह धर्म का काम | पतितपावन सीताराम ||
भिक्षा लेकर सीता आई , हाथ पकड रथ में बैठाई , सुनी कुटीया देखि राम | पतितपावन सीताराम ||
धरनी गिरे राम रघुराई , सीता के बिन व्याकुलताई , हे प्रिय सीते चीखे राम | पतितपावन सीताराम |
लक्ष्मण , सीता छोड़ नहीं तुम आते , जनक दुलारी नहीं गवाते , बने बनाये बिगड़े काम | पतितपावन सीताराम ||कोमल बदन सुहासिनी सीते , तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते , लगे चांदनी जैसे घाम | पतितपावन सीताराम ||सुन री मैना , सुन रे तोता , मैं भी पंखो वाला होता , वन वन लेता ढूढ तमाम | पतितपावन सीताराम |
श्यामा हिरनी , तू ही बता दे , जनक नन्दनी मुझे मिला दे , तेरे जैसी आँखे श्याम | पतितपावन सीताराम |
वन वन ढूढ रहे रघुराई , जनक दुलारी कहीं न पाई , गृद्धराज ने किया प्रणाम | पतितपावन सीताराम |
चख चख कर फल शबरी लाई , प्रेम सहित खाये रघुराई , इससे मीठे नहीं हैं आम | पतितपावन सीताराम |
विप्र रूप धरि हनुमत आये , चरण कमल में शीश नवाये , कन्धे पर बैठाये राम | पतितपावन सीताराम ||
सुग्रीव से करी मिताई , अपनी सारी कथा सुनाई , बाली पहुंचाया निज धाम | पतितपावन सीताराम ||
सिंहासन सुग्रीव बैठाया , मन में वह अति हरषाया , वर्षा ऋतू आई हे राम | पतितपावन सीताराम ||
हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ , वानर पति को यु समझाओ , सीता बिन व्याकुल हैं राम | पतितपावन सीताराम ||
देश देश वानर भिजवाए , सागर के सब तट पर , सहते भूख प्यास और घाम | पतितपावन सीताराम ||
सम्पाती ने पता बताया , सीता को रावण ले आया , सागर कूद गये हनुमान | पतितपावन सीताराम ||
कोने कोने पता लगाया , भगत बिभीषण का घर पाया , हनुमान को किया प्रणाम | पतितपावन सीताराम ||
अशोक वाटिका हनुमत आए , वृक्ष तले सीता को पाये , आँसू बरसे आठो याम | पतितपावन सीताराम ||
रावण संग निशिचरी लाके , सीता को बोला समझा के , मेरी और तुम देखो बाम | पतितपावन सीताराम ||
मन्दोदरी बना दूँ दासी , सब सेवा में लंका वासी , करो भवन चलकर विश्राम | पतितपावन सीताराम ||
चाहे मस्तक कटे हमारा , मैं नहीं देखू बदन तुम्हारा , मेरे तन मन धन हैं राम | पतितपावन सीताराम ||
ऊपर से मुद्रिका गिराई , सीताजी ने कंठ लगाई , हनुमान ने किया प्रणाम | पतितपावन सीताराम ||
मुझको भेजा हैं रघुराया , सागर लाँघ यहाँ मैं आया , मैं हूँ राम दास हनुमान | पतितपावन सीताराम ||
भूख लगी फल खाना चाहूँ , जो माता जी की आज्ञा पाऊँ , सब के स्वामी हैं श्री राम | पतितपावन सीताराम ||
सावधान हो कर फल खाना , रखवालो को भूल न जाना , निशाचरों का हैं यह धाम | पतितपावन सीताराम ||
हनुमान ने वृक्ष उखाड़े , देख देख माली ललकारे , मार – मार पहुँचाये धाम | पतितपावन सीताराम ||
अक्षय कुमार को स्वर्ग पहुंचाया , इन्द्रजीत फांसी ले आया , ब्रह्मफांस ले आया , ब्रह्मफांस से बंधे हनुमान | पतितपावन सीताराम ||
सीता को तुम लौटा दीजो , उन से क्षमा याचना कीजो , तीन लोक के स्वामी राम | पतितपावन सीताराम |
भगत बिभीषन ने समझाया , रावण ने उसको धमकाया , सनमुख देख रहे हनुमान | पतितपावन सीताराम ||
रुई , तेल , घृत , वसन मंगाई , पूछ बाँध कर आग लगाई , पूंछ घुमाई हैं हनुमान | पतितपावन सीताराम ||
सब लंका में आग लगाई , सागर में जा पूंछ बुझाई , हृदय कमल में राखे राम | पतितपावन सीताराम |
सागर कूद लौट कर आये , समाचार रघुवर ने पाये , दिव्य भक्ति का दिया इनाम | पतितपावन सीताराम ||
वानर रीछ संग में लाए , लक्ष्मण सहित सिन्धु तट आये , लगे सुखाने सागर राम | पतितपावन सीताराम ||
सेतु कपि नल नील बनावें | राम राम लिख सिला तिरावें , लंका पहुंचे राजा राम | पतितपावन सीताराम ||
अंगद चल लंका में आया , सभा बीच में पाँव जमाया , बाली पुत्र महा बल धाम | पतितपावन सीताराम ||
रावण पाँव हटाने आया , अंगद ने फिर पांव उठाया , क्षमा करे तुझको श्री राम | पतितपावन सीताराम ||
निशाचरों की सेना आई , गरज तरज कर हुई लड़ाई , वानर बोले जय श्री राम | पतितपावन सीताराम ||
इन्द्रजीत ने शक्ति चलाई , धरनी गिरे लखन मुरझाई , चिन्ता करके रोये राम | पतितपावन सीताराम |
जब मैं अवधपूरी से आया , हाय पिता ने प्राण गँवाया , वन में गई चुराई बाम | पतितपावन सीताराम ||
भाई तुमने भी छिटकाया , जीवन में कुछ सुख नहीं पाया , सेना में भारी कोहराम | पतितपावन सीताराम ||
जो संजीवनी बूटी को लाये , तो भाई जीवित जाये , बूटी लायेगा हनुमान | पतितपावन सीताराम ||
जब बूटी का पता न पाया , पर्वत ही लेकर के आया , कालनेम पहुँचाया धाम | पतितपावन सीताराम ||
भक्त भरत ने बाण चलाया , चोट लगी हनुमत लंगड़ाया , मुख से बोले जय सिया राम | पतितपावन सीताराम ||
बोले भरत बहुत पछताकर , पर्वत सहित बाण बैठाकर , तुम्हे मिला दूँ राजा राम | पतितपावन सीताराम ||
बूटी लेकर हनुमत आया , लखन लाल उठ शीश नवाया , हनुमत कंठ लगाये राम | पतितपावन सीताराम ||
कुम्भकरन उठकर तब आया , एक बाण में उसे गिराया , इन्द्रजीत पहुँचाया धाम | पतितपावन सीताराम ||
दुर्गा पूजन रावण कीनो , नौ दिन तक आहार न लीनों , आसन बैठ किया हैं ध्यान | पतितपावन सीताराम |
रावण का व्रत खंडित कीना , परम धाम पँहुचा ही दिना , वानर बोले जय श्री राम | पतितपावन सीताराम ||
सीता ने हरी दर्शन कीना , चिन्ता शोक सभी तज दीना , हँस कर बोले राजा राम | पतितपावन सीताराम ||
पहले अग्नि परीक्षा पाओ , पीछे निकट हमारे आओ , तुम हो पतिव्रता हे बाम | पतितपावन सीताराम ||
करी परीक्षा कंठ लगाई , सब वानर सेना हरषाई , राज्य विभीषन दीन्हा राम | पतितपावन सीताराम ||
फिर पुष्पक विमान मँगाया , सीता सहित बैठे रघुराया , दण्डकवन में उतरे राम | पतितपावन सीताराम ||
ऋषिवर सुन दर्शन को आये , स्तुति कर मन में हरषाये , तब गंगा तट पर आये राम | पतितपावन सीताराम ||
नन्दी ग्राम पवनसुत आये , भाई भरत को वचन सुनाए , लंका से आए हैं राम | पतितपावन सीताराम ||
कहो विप्र तुम कहाँ से आये , भाई भरत को गले लगे , ,
अवधपुरी रघुनन्दन आये , मन्दिर मन्दिर मंगल छाये , माताओं को किया प्रणाम | पतितपावन सीताराम ||
भाई भरत को गले लगाया , सिंहासन बैठे रघुराया , जग ने कहा “ हैं राजा राम “ | पतितपावन सीताराम ||
सब भूमि विप्रो को दीनी विप्रो ने वापस दे दीनी , हम तो भजन करेंगे राम | पतितपावन सीताराम ||
धोबी ने धोबन धमकाई , रामचन्द्र जी ने यह पाई , वन में सीता भेजी राम | पतितपावन सीताराम ||
बाल्मीकि आश्रम में आई , लव व कुश हुए दो भाई , धीर वीर ज्ञानी बलवान | पतितपावन सीताराम ||
अश्वमेघ यज्ञ कीन्हा राम , सीता बिनु सुने काम , लव कुश वहाँ दियो पहचान | पतितपावन सीताराम ||
सीता , राम बिना अकुलाई , भूमि से यह विनय सुनाई , मुझको अब दीजो विश्राम | पतितपावन सीताराम ||
सीता भूमि माहि समाई , देखकर चिन्ता की रघुराई , बार बार पछताये राम | पतितपावन सीताराम ||
राम राज्य में सब सुख पावें , प्रेम मग्न हो हरि गुन गावें , दुःख क्लेश का रहा न नाम | पतितपावन सीताराम ||
ग्याहर हजार वर्ष परयन्ता , राज कीन्हा श्री लक्ष्मी कंता , फिर वैकुण्ठ पधारे राम | पतितपावन सीताराम ||
अवधपुरी बैकुण्ठ सिधाई , नर नारी सबने गति पाई , शरणागत प्रतिपालक राम | पतितपावन सीताराम ||
सब भक्तों ने लीला गाई , मेरी विनय सुनो रघुराई , भूलू नहीं तुम्हारा नाम | पतितपावन सीताराम ||
यह माला पूरी हुई मनका एक सौ आठ , मनोकामना पूर्ण हो नित्य करे जो पाठ | पतितपावन सीताराम ||

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